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मंगलवार, जनवरी 18, 2011

नव गीत

कली का कल चला गया,
बहार बन के आ गयी |
निशा गयी, प्रभा हुई,
रश्मि वन में छा गयी |
मधुप जलज पे आ गए,
कुमुद भी शर झुका लिए|
पल्लवी विहर गयी,
कुंज कली खिल गयी |
तुहिन विन्दु की छटा,
विभावरी बिछा गयी |
प्रज्ञा काल आ गया,
विहग का गान छा गया |
मोहनी छटा लिए,
कंचना पिरो गयी |
कंचना पिरो गयी ||
                        दीपांकर कुमार पाण्डेय  
(सर्वाधिकार सुरक्षित )