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मंगलवार, जनवरी 18, 2011

नव गीत

कली का कल चला गया,
बहार बन के आ गयी |
निशा गयी, प्रभा हुई,
रश्मि वन में छा गयी |
मधुप जलज पे आ गए,
कुमुद भी शर झुका लिए|
पल्लवी विहर गयी,
कुंज कली खिल गयी |
तुहिन विन्दु की छटा,
विभावरी बिछा गयी |
प्रज्ञा काल आ गया,
विहग का गान छा गया |
मोहनी छटा लिए,
कंचना पिरो गयी |
कंचना पिरो गयी ||
                        दीपांकर कुमार पाण्डेय  
(सर्वाधिकार सुरक्षित )

32 टिप्‍पणियां:

  1. प्रज्ञा काल आ गया,
    विहग का गान छा गया |
    मोहनी छटा लिए,
    कंचना पिरो गयी |
    कंचना पिरो गयी ||

    वाह वाह.
    आप नवगीत बहुत अच्छा लिखते हैं दीप जी बधाई आपको.

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत ही भावपूर्ण नवगीत....... सुंदर प्रस्तुति.....

    जवाब देंहटाएं
  3. छायावादी प्रकृति की कविता आज भी लिखी जाती है यह देख कर सुखद अनुभव होता है. बहुत अच्छी रचना.

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  4. शब्दों के जादूगर हैं आप दीप भाई

    जवाब देंहटाएं
  5. क्या समा बांधा है,

    वाणी-कुसुम की माला से ऊषा की अर्चना हो गई!!

    कली का कल चला गया,
    बहार बन के आ गयी |
    निशा गयी, प्रभा हुई,
    रश्मि वन में छा गयी |

    जवाब देंहटाएं
  6. नवगीत अच्छा लगा।

    शुभकामनाएं।

    - हरीश

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  7. सुन्दर गीत... शब्दों का चयन अच्छा..

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  8. प्रज्ञा काल आ गया,
    विहग का गान छा गया |
    मोहनी छटा लिए,
    कंचना पिरो गयी |
    कंचना पिरो गयी
    सुन्दर नवगीत.......

    जवाब देंहटाएं
  9. deepak ji ..
    aapko badhaaii ...likhte rahe ..nikhaar aati jaayegi ..
    agar mere blog n aaye ho to aapka swagat hai ..
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    जवाब देंहटाएं
  10. प्रज्ञा काल आ गया,
    विहग का गान छा गया |
    मोहनी छटा लिए,
    कंचना पिरो गयी ...

    Bahut khoob ... sundar navgeet hai ...

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  11. का है यू
    कछु समझ नाहीं आवा हो
    कऊनो तकलीफ आहि का ?

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  12. यह नवगीत बहुत ही प्यारा है...बहुत खूब...

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  13. यार हम तो फैन हो गये तुम्हारे
    क्या जादूगरी की है शब्दो की
    बेहतरीन नवगीत
    फालो कर रहा हूँ आगे भी पढना चाहूँगा

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  14. सैनी जी स्वागत है आप का ,और बहुत बहुत धन्यवाद हौसला बढाने का

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  15. दीपंकर जी,
    आपके विचारों से जो शब्द प्रवाह इस नव-गीत के रूप में बहा है, उसे पढ़ कर 'दिनकर' साहब की स्मृति हो आई है. बहुत ही खूबसूरत शब्द चयन, मनमोहक शैली आपको बुलंदियों पर ले जाये. शुभ कामनाओं के साथ.
    प्रोफेसर अमित हंस.
    http://avhans.blogspot.com

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  16. बहुत सुन्दर शब्द चयन व भाव....

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  17. बहुत खूब .... ! सुंदर रचना है
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  18. प्रज्ञा काल आ गया,
    विहग का गान छा गया |
    मोहनी छटा लिए,
    कंचना पिरो गयी |
    कंचना पिरो गयी

    बहुत प्यारी रचना

    जवाब देंहटाएं
  19. कली का कल चला गया,
    बहार बन के आ गयी |
    निशा गयी, प्रभा हुई,
    रश्मि वन में छा गयी |

    बहुत सुन्दर रचना । आपका यह नवगीत बहुत अच्छा लगा । बधाई स्वीकारे ।

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