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बुधवार, फ़रवरी 15, 2012

शुक्रवार, सितंबर 16, 2011

हाल ऐ वतन

हाल ऐ वतन हम कैसे कहें, 
 बेदर्द जमाने को हम कैसे सहें,
हाल ऐ वतन हम कैसे कहें, | 
मुस्तकविल वतन का क्या होगा,  
जख्म ऐ मरहम वतन का क्या होगा,
हम से ही वतन का वजूद है,
दर्द ऐ वतन हम कैसे सहें,
हाल ऐ वतन हम कैसे कहें, |
हम ही वतन के नुमाइंदे हैं,
हाल ऐ वतन हम क्या कहें,
हाल ऐ वतन हम कैसे कहें, ||
                        दीपांकर कुमार पाण्डेय 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित )       

बुधवार, अप्रैल 06, 2011

मै तो बीता हुआ काल हो गया

मै तो बीता हुआ काल हो गया,
इक अनजाना सा ख़याल हो गया
मै तो बीता हुआ काल हो गया ......|
जब मै था, तो दुनिया खुश थी 
दुनिया में अमन चैन था 
अब   ये पुराना ख़याल हो गया 
मै तो बीता  हुआ काल हो गया ..|
जब मै था, तो शर्मो हया का पर्दा था 
बड़ों का सम्मान था, छोटों को प्यार था,
अब तो ये पिछड़ा हुआ ख़याल हो गया 
मै तो बीता हुआ काल हो गया ......|
मै तो दुनिया को बनाता रहा 
नई-नई सभ्यता से सजाता रहा 
एकता का सबक सिखाता रहा 
अब तो इसी को मिटाने का रिवाज हो गया 
मै तो बीता हुआ काल हो गया |
अब ये बातें किताबों में सजने लगी 
सभी को नई - नई इस्टाइलें  जमने लगीं 
एक से एक नव सभ्यता का विकास हो गया 
मै तो बीता हुआ काल हो गया |
जब मै था तो वदन छिपता था 
रंग विरंगे बादलों में जैसे चाँद खिलता था 
अब तो सूक्ष्म वस्त्रों का आविर्भाव हो गया 
ओपन बाड़ी का विस्तार हो गया,
मै तो बीता हुआ काल हो गया,
इक अनजाना सा ख़याल हो गया |
मै गया, वो आया ,
सदाचार गया, व्यभिचार आया ,
सभ्यता को लाना दुराचार हो गया 
कितना बदला - बदला संसार हो गया 
मै तो बीता हुआ काल हो गया 
इक अनजाना सा ख़याल हो गया 
मै तो बीता हुआ काल हो गया ||     
                                        दीपांकर कुमार पाण्डेय
      (सर्वाधिकार सुरक्षित)

शुक्रवार, फ़रवरी 18, 2011

छंद

घुघरारी  बनी लट की लटिया
रंग घोरी गए जो कपोलन की
जल आनि करैं बड़री अखियाँ
तनिके भौं भरी कलोलि करैं |
मुख बीच लगी नथुनी चमकै
जिमि बारी वसंत की बेरि जगै
अधरारी बनी नग़ की मठिया
जो सोनार की शाल में सोन पकै|
बरसात की बाढ़ सी है नदिया
उफनाती लहर सी ये देह बनै
मन की मदिरा तजि प्रेम जगै
जो बनै मदमोह के भोग लगै || 
                                     दीपंकर कुमार पाण्डेय  
    (सर्वाधिकार सुरक्षित )

शुक्रवार, फ़रवरी 04, 2011

छंद-1

अभी तो कहानी सुने,
अब तो जुबानी सुनो
अपने समाज का हम
रूप दिखाएँगे |

बसन बटोरे नाही,
वदन सिकोरे नाही,
काया के बहाव को,
हम भाव से दिखायेंगे|

आज के वसन में तो
रख्खा क्या है भाई मेरे,
ऐसे ही वसन को हम,
पास नहीं लायेंगे|

फूल जैसी काया की
ये छाया तो विगारे है,
फूल जैसी काया से
हम इसको हटायेंगे ||
                           दीपंकर कुमार पाण्डेय  
(सर्वाधिकार सुरक्षित )


मंगलवार, जनवरी 18, 2011

नव गीत

कली का कल चला गया,
बहार बन के आ गयी |
निशा गयी, प्रभा हुई,
रश्मि वन में छा गयी |
मधुप जलज पे आ गए,
कुमुद भी शर झुका लिए|
पल्लवी विहर गयी,
कुंज कली खिल गयी |
तुहिन विन्दु की छटा,
विभावरी बिछा गयी |
प्रज्ञा काल आ गया,
विहग का गान छा गया |
मोहनी छटा लिए,
कंचना पिरो गयी |
कंचना पिरो गयी ||
                        दीपांकर कुमार पाण्डेय  
(सर्वाधिकार सुरक्षित )

शुक्रवार, दिसंबर 31, 2010

नव वर्ष

नव ऊषा की नवल रश्मि ये,
नव प्रभात ले आई है |
नव उपवन की ये किसलय,
जो चहूँ दिशा महकाई है|
मन प्रसून तन उपवन बन कर,
मलय बसंत बहाया है |
अहो भाग्य है, हम सब का,
जो नवल क्रांति ले आया है |
हे पथिक रुकना मत आगे,
तुमको बढ़ते जाना है |
बढ़ कर स्वागत कर लो,
कल ही इसको आना है |
कल ही इसको आना है ||
      (आप सभी को नव वर्ष मंगलमय हो)
                             दीपांकर कुमार पाण्डेय 
-:सर्वाधिकार सुरक्षित :- 

बुधवार, दिसंबर 01, 2010

जिंदगी

है इक तलाश जिंदगी ,
है इक प्याश जिंदगी |
उस दौर का मरहम तो नहीं होता,
जिस दौर में, होती है किसी की आश जिंदगी |
मै कहाँ तक शिकायत करूँ जिंदगी से,
क्योंकि, बुझती आँखों में भी दिखाती है,
इक आश जिंदगी |
इक पल में सब कुछ छीन लिया,
फिर भी, बनी है, अनजान जिंदगी ||

        -: सर्वाधिकार सुरक्षित :-

सोमवार, अक्टूबर 18, 2010

वक्त नहीं

हर ख़ुशी है लोगों के दमन में,
पर एक हंसी के लिए वक़्त नहीं|
दिन रात दौड़ती दुनिया में,
ज़िन्दगी के लिए ही वक़्त नहीं|
माँ की लोरी का एहसास तो है,
पर माँ को माँ कहने का वक़्त नहीं |
सारे रिश्तों को तो हम मार चुके,
अब उन्हें दफ़नाने का भी वक़्त नहीं|
सारे नाम मोबाइल में हैं,
पर दोस्ती के लए वक़्त नहीं|
.गैरों की क्या बात करें,
अब तो अपनों के लिए ही वक़्त नहीं|
.आँखों में है नींद बड़ी,
पर सोने का वक़्त नहीं|
.दिल है ग़मों से भरा हुआ,
पर रोने का भी वक़्त नहीं|
पैसों कि दौड़ में ऐसे दौड़े,
की थकने का भी वक़्त नहीं|
पराये एहसासों की क्या कदर करें,
जब अपने सपनो के लिए ही वक़्त नहीं|
तू ही बता ये ज़िन्दगी,
इस ज़िन्दगी का क्या होगा,
की हर पल मरने वालों को,
जीने के लिए भी वक़्त नहीं...........||

बुधवार, अक्टूबर 13, 2010

दोस्ती

है प्यार का एहसास दोस्ती,
है सुरक्षा का विस्वास दोस्ती|
इक दोस्त ही है,
जो, हर दर्द का एहसास कराता है|
इसलिए दोस्तों में है, ये खास दोस्ती||
मै तो इसी एहसास का, काहिल हूँ,
क्योंकि, रगों का मधुर संचार है दोस्ती |
जिस रंग में मिलती है दुनियाँ,
उस रंग का नाम है दोस्ती ||
हर पल साथ चलने को, तैयार रहता है जो,
उसी विस्वाश का, नाम है दोस्ती|
वीराने में भी है इक, आश दोस्ती,
शूने पन में है मधुर एहसास दोस्ती ||
मै तो दोस्ती के, गुमान में ही झूमता हूँ,
क्योंकि सफलता का भी इक अंदाज है दोस्ती |
अगर दोस्ती नहीं मिली तो, खोज लो इसको ;
क्योंकि जिंदगी कि सुरुआत है, दोस्ती ||
है प्यार का एहसास, दोस्ती,
है  सुरक्षा का विस्वाश दोस्ती ||
                               
      -: सर्वाधिकार सुरक्षित :-
  

बुधवार, अक्टूबर 06, 2010

मनतब्य अपना -अपना

मै गाँधी जयंती के दिन समाचार पत्र पढ़ रहा था, उसमें गाँधी जी के बारे में छपा था, "किसिम - किसिम के गाँधी"|
इस लेख के अन्तर्गत लेखक ने समाज में ब्याप्त गाँधी जी की विभिन्न छवियों का उल्लेख किया था, कि मानव मस्तिष्क पर गाँधी जी कि कई तरह कि छाप  है|  कोई उनको कमजोर समझता है, तो कोई उनको सीधा समझता है, तो कोई  बेवकूफ  कि संज्ञा देता है, और कोई पैदैसी बूढा समझता है|
       दिल्ली विस्वविद्यालय के "आत्मा राम सनातन धर्म" महाविद्यालय में छात्र संगोष्ठी आयोजित कि गयी थी जिसमें गाँधी जी के विभिन्न पहलुओं पर चर्चायें हुईं,  जिसमें मुख्य  मुद्दा था "अहिंसा" गाँधी जी सत्य और अहिंसा के पुजारी थे, सवाल उठाया -गया  सत्य क्या है?
गाँधी पक्ष से उत्तर आया  कि दीन दुखियों कि सेवा करना, हमेशा धर्म का साथ देना सच्चाई के रास्ते पर चलना, बुराइयों से परहेज करना,  उत्तर पूरा नहीं हुआ  था कि तभी किसी ने  उनके तीनो बन्दरों के ऊपर टिप्पड़ी किया, क्या गाँधी जी के तीनो बन्दरों  का जो कथन था ("बुरा मत देखो" -(मतलब  किसी के  साथ अत्याचार हो रहा हो, तो उसे मत देखो,  आँखे बन्द कर लो|)   "बुरा मत सुनो"- (मतलब अगर किसी पर अत्याचार हो रहा है, तो उसकी पुकार भी मत सुनो, चिल्लाने दो उसे)|  "बुरा मत कहो"  -(किसी को कोई परेशान कर रहा है या कोई किसी ब्यक्ति पर अत्याचार कर रहा है तो किसी से भी मत कहो करने दो जो भी मनमानी कर रहा है) क्या यही मतलब है इसका |
       खैर ये तो थीं डिवेट कि बातें मगर आज इसी कथन के बहुत तगड़े फालोवर  हैं| अक्सर  मै देखता हूँ कुछ लोग किसी के साथ बद्तमीजी कर रहे होते हैं, और हम लोग नजर बचा कर, चुप चाप उसे अनसुना कर देतें हैं,| क्यों ?  क्योंकि वो किसी और के साथ हो रहा है|
         कदाचित, ऐसा ही गाँधी जी के साथ  हुआ, वो लन्दन से भगाए गए, ट्रेन से नीचे उतार दिए गए,नस्लवादी भेद भाव का शिकार हुए, तथा तरह - तरह कि प्रताडनाओं के शिकार बने तब वो स्वतन्त्रता संग्राम में सम्मिलित हुए, क्या इसके पहले भारत में अंग्रेजी शासन नहीं था,  या फिर भारतीयों पर अंग्रेजी प्रताड़ना नहीं थी,... -थी लेकिन तब तक इनकी लाइफ मस्त चल रही थी, और जब इनके ऊपर अंग्रजों का आक्रोश बरषा तब इन्हे देश भक्ति कि याद आई| अगर गाँधी जी चाहते तो भगत सिंह और उनके साथियों को फाँसी नहीं होती, मगर नहीं, इन्होने ऐसा नहीं किया |
एक साधारण सी बात है, अगर आप के घर में आप के बच्चों पर कोई मुसीबत आई है, तो सबसे पहले आप क्या करेंगे?  पहले आप बच्चों को बचाने का  हर सम्भव प्रयास करेगें, माना कि आप धर्म के अनुरूप चलतें हैं, लेकिन शार्स्त्र कहता है कि, अगर आप के पुत्रों पर कोई आपत्ति आई है, उनके प्राण शंकट में हैं, तो सबसे पहला धर्म है  कि उनकी प्राण रक्षा करना | लेकिन गाँधी जी ने ऐसा नहीं किया, क्यों क्या ये वीर पुरुष उनका साथ नहीं दे रहे थे इसलिए,   या फिर आप के वास्तविक पुत्र नहीं थे , फिर भी, थे तो वे भारत के लाल, काम तो वही कर रहे थे, जो आप कर रहे थे, बस फरक इतना था कि आप  लोगों को ले कर नारा लगते थे, और वो अंग्रेजों को मिटाने का काम करते थे | आप वगैर जयकारा  के और बिना जनता के परग नहीं भांजते थे, वो बिना किसी कि परवाह किये अंग्रेजों से जूझ पड़ते थे,
         कुछ लोग तो इन्हें ही अंग्रेजों के ज्यादा दिन टिकने का कारण मानते हैं, क्योंकि जिस तरह से विरोध का विगुल बजा था, १८५७ से लड़ाइयाँ जोर पकड़ रहीं थीं, बीच में गाँधी नामक गति अवरोधक आ के लड़ाइयों पर विराम लगा दिया | और अहिंसा का प्रचार करने लगे, बेचारे जो गरम दल के नेता वो कमजोर पड़ने लगे, और एक - एक करके मरते गए |
      कहीं ना कहीं ये भी  सियाशत कि एक चाल थी | क्योंकि भारत तब आजादी कि तरफ अग्रसर था, सब को पता चल गया था कि भारत अब आजाद हो गा, आज नहीं तो कल, क्योंकि सारी जनता उबलते तेल कि तरह खौल उठी थी | और तभी एक ऐसे  परिवार कि  इंट्री हुई, जो सभी को पीछे छोंड दिया और गाँधी जी के पिछलग्गू बन गए, |
         जो नेता बेचारे गाँधी जी के साथ सुरू से लगे रहे, उनका तो कुछ नहीं, लेकिन इनका  परचम लहराने लगा | क्योंकि इस परिवार के एक शख्स ऐसे थे जो कि चमचा गिरी में निपुड थे, और उन्ही के चमचागीरी का नतीजा है कि, उनके पुत्र को भारत के सत्ता कि सौगात मिली |
         इतना ही नहीं उन्होंने अपने पुरे परिवार का मार्ग प्रशस्त कर दिया, उन्होंने गाँधी जी के वास्तविक पुत्र को कभी राजनीति में सामने नहीं आने दिया, वरन इसके उनकी पौत्री जो कि एक कश्मीरी मुसलमान से प्यार करती थी, उस मुसलमान को उन्होंने गाँधी जी का दत्तक पुत्र बना दिया, और अपनी पौत्री कि शादी करा दिया |
           आज वो परिवार जातिवाद कि बात ना करते हुए भी जातीगत पक्षपात करता है,  कहा है कि   "प्रत्यक्षं कीं  प्रमाड्म"   अयोध्या मामला ही देख लीजिये जमीन के जो तीन तुकडे हुए हैं वो मात्र केंद्र सरकार कि ही दखलंदाजी है, अब इससे बड़ा प्रमाण  आप को क्या दूं | आप लोग कहते हो गाँधी जी धर्म के रस्ते पर चलते थे, क्या यही रास्ता दिखाया था अपने वंशजों को कि धर्म के तीन तुकडे कर दो, ये गाँधी जी कि कमजोरी कही जा सकती है, या उस परिवार कि चालाकी, लेकिन गाँधी जो भी हो गाँधी जी स्मर्णीय रहेगें |

मंगलवार, अक्टूबर 05, 2010

सार्थक रचना

बहुत ही अच्छी रचना लिखी है दीपंकर जी आपने। माँ शब्द का अर्थ कितनी सरलता से सबको समझाने की कोशिश की है।
शुरू हुआ है जहाँ से जीवन,
वो तन है कितना पावन
......
......
उस छाया की महिमा क्या ......
वेद पुराण भी कहते हैं॥
हार्दिक शुभकामनायें .... आगे भी ऐसे ही लिखते रहें

शुक्रवार, अक्टूबर 01, 2010

माँ

शुरू हुआ है जहां से जीवन,
वो तन है कितना पावन  |
पा करके उस माँ का आँचल,
हरा भरा है ये उपवन ||

                     उस  गोदी की लोरी क्या,
                     जो सावन सा सुख देती है |
                     हर तन्द्रा को भूल  के प्राणी,
                      उस पन में भर देती है ||
जिस छाया में पल  कर हम,
आज यहाँ तक पहुचें हैं |
उस छाया की महिमा क्या ......,
जो वेद पुराण भी कहतें हैं ||
                              ममता की बौछार है जो,
                              सब पर एक सी पड़ती है|
                              चाहे कितनी क्रूर बने वो,
                               पर तो माँ , माँ दिखती है ||
खून से जिसने सींच मुझको,
और तन में स्थान दिया |
उसी वृक्ष का फल हूँ इक मै,
जो जीवन मुझको दान दिया ||
                                     मै अंधियारे में सोता था,
                                      बन प्रकाश वो आई जो |
                                     मेरा पहला शब्द वही था,
                                      वो दुनिया में लाइ जो ||

                           -: सर्वाधिकार सुरक्षित :-

बुधवार, सितंबर 29, 2010

राम बांड इलाज

अरे अंकल इतने सोच में क्यों हो................?|
क्या बताएं यार जिधर देखो मुसीबत ही मुसीबत है, पूरी दिल्ली में कहीं नहीं, बस यहीं सांप निकलना था|
जहाँ इतनी साफ सफाई है,|

अरे कोई बात नहीं अंकल..., अंग्रेजों को क्या पता, हम उन्हें बोल देगें की,  हम लोग शंकर  भगवान् के भक्त हैं जहाँ भी शुभ काम होता है, हम सांप छोड़तें हैं, इस लिए सांप हम ने छोंडा  है डरने की कोई बात नहीं है|

हाँ यार ऐसा ही कुछ करतें है ....|
लेकिन एक और विडम्बना है....|

अब क्या अंकल....|

यार वो जो छत की पट्टी टूट रही है उससे डर लग रहा है.
अरे उससे क्या डरना अंकल वो तो कब की ठीक हो गयी है|

अरे नहीं यार, ठीक तो हो गयी है, लेकिन डर है की कहीं स्टेडियम में   मै बैठा रहूँ और ऊपर से कोई पट्टी मेरे शर पर गिरे तो मेरी तो..........|


हाँ अंकल ये तो है,   एक इडिया है मेरे दिमाग में, आप आदेश करें तो बोलूँ ,
अरे तू  बोल यार ............|

 अंकल आप ना एक हेलमेट बनवा लो ..........., अबे चुप हेलमेट बनवा लो, लोग क्या कहेगें,|

अरे पूरी बात तो सुनते नहीं हो बीच में ही बोल पड़ते हो, पहले पूरी बात सुनो.... मै कह रहा था की हेलमेट बनवा लो और हेलमेट पर शेरा की तस्वीर बनवा लो, और जब स्टेडियम में जाना तो पहन लेना, जो देखे गा बोल दूंगा की हमारे चेयरमैन साहब खेल भावना को शर से लगा कर रखतें हैं|

हाँ.. यार..ये तो बहुत अच्छा है|
ये तो शर दर्द का राम बांड इलाज है ..|

बुधवार, सितंबर 22, 2010

आल इज वेल

जिसे देखो वही चला आ रहा है   इन्स्पेक्सन  करने  किसी को मेरी चिंता ही नहीं है, मै किस - किस को जवाब दूं, मै बोलता हूँ , सब अपनी - अपनी ऑंखें बंद रखो, पता नहीं, किस की नजर लग जाय, लेकिन  वही हुआ जिसका डर था | पहले छत टूटी, अब  ब्रिज, पता नहीं आगे  क्या होगा,  किसकी नजर  खराब है अब मै क्या करूँ?
         अरे कलमाड़ी अंकल चिंता मत करो यमुना भी  इन्स्पेक्सन  करने आ रही है,  अब कोई कर  भी क्या सकता है  आप ने बनाया ही इतना सुन्दर है, की आदमी क्या  यमुना भी अपने आप को नहीं रोक पा रही है|
 चलो कोई बात नहीं है अपनी  "यम. सी. डी." है ना, सब बराबर कर देगी अगर वो ना कर पाई तो आंटी तो हैं ही,  कितने सालों से साफ करती आई हैं, ये भी साफ़ कर देगीं|

कोई बात नहीं बस दिल पे हाँथ रखो और बोलो  "आल इज वेल-आल इज वेल "

सोमवार, सितंबर 20, 2010

फैसला देश का

उच्च न्यायालय  का फैसला २४ सितम्बर को आने वाला है, इस समय हम सभी को संयम रखना चाहिए , और न्यायालय  का जो भी फैसला हो सभी को सिरोधार्य करना    चाहिए , क्योंकि हम सभी का पहला धर्म होता है  देश का सम्मान और देश के कानून का पालन करना, हम ये क्यों भूल जाते हैं की हम ना ही हिन्दू हैं ना ही मुसलमान हैं ना ही सिख्ख हैं और ना ही इसाई है हम हिन्दुस्तानी हैं | हम क्यों इस तरह का दंगा फसाद करतें हैं ,आपस में ही अपने भाइयों को मारतें  हैं अपने ही देश को हानि पहुचाते हैं , हमारे कारण हमारी माताएं बहने व बच्चे घर से बहार निकलते हुए डरतें हैं  क्यों हम  आपसी कलह का कारण बनतें हैं| इस्वर  वही है, अल्लाह भी वही है, हम उसी की संतन हैं और उसी की पूजा करतें हैं उसी की इबादत करतें हैं और उसी के लिए ही लड़तें हैं, वो तो ना ही मंदिर में रहता है ना ही मस्जिद में रहता है, वो तो सिर्फ श्रध्दा और विस्वाश में रहता है| फिर भी हम मंदिर मस्जिद के लिए झगड्तें हैं|
कम से कम हम अपने घर को तो सुरक्षित बनायें, आपस में तो सौहार्द रखें, एक दुसरे से मैत्री भावना रखें बड़े बुजुर्गों की सेवा करे दीनों की सहायता करे खुदा की यही सच्ची इबादत है, इस्वर की यही सच्ची पूजा है, खैर जो भी हुआ हो गया लेकिन अब समय आ गया है की आपस मैं मिल कर  उच्च न्यायालय के फैसले का स्वागत करें ,
न्यायालय  से जो भी फैसला आयेगा सर्व हित मैं होगा, वैसे न्यायालय को चाहिए की वो उस जगह पर या तो स्कूल खुलवा दे, या फिर अस्पताल बनवा दे और या फिर अनाथालय खुलवा दे, क्योंकि ऐसा करने से ना तो हिन्दू पक्ष में होगा और ना ही मुसलिम पक्ष में होगा और ये फैसला धर्म के हित में होगा इससे सर्व हित की रक्षा होगी |

बुधवार, मार्च 10, 2010

सर्वे का खंडन

जिस तरह से भारत में रहने वाले लोगो को सुन्दरता के लिए दुनिया में आठवां स्थान प्राप्त हुआ है, यह गलत तो है ही, लेकिन पक्ष पात पूर्ण भी है क्योंकी जिस तरह से इंग्लैंड और अमेरिका के लोग रहते हैं, इस तरह से देखा जाय तो यह बहुत ही गन्दा तरीका है की यहाँ के लोग तो ६ -६ महीने चादर ही नहीं धोते साफ सफाई ही नहीं रखते , सिर्फ ड्राईक्लीन ( सूखा स्नान) होने से ही नहीं बात बनती , लोगो को और भी कुछ देखना चाहिए, केवल चमड़ी की ही चमक से परिणाम नहीं निकलना चाहिए क्योंकि भारतीय लोग तो सदाबाहरी लोग होते हैं उनके लिए क्या जाड़ा क्या बरसात क्या गर्मी सभी मौसम में एक जैसे ही रहतें है, जिसे प्राकृतिक सुन्दरता कहा जा सकता है
ऐसे में सिर्फ बनावटी सुन्दरता के लिए प्रथम स्थान क्यों निर्धारित किया गया है , भारतीयों की सुन्दरता अनोखी सुन्दरता है जो की पूरी दुनिया में नहीं है, सुस्मिता सेन , ऐस्वर्याराय, प्रियंका चोपड़ा, जैसी बिस्वासुंदरियां अपनी सौन्दर्ता के लिए जानी जाती है, सलमान खान, अक्षय कुमार, अभिषेक बच्चन, जैसे सफल अभिनेता अपनी आकर्षण के लिए विश्व बिख्यात हैं
इस तरह भारतीय लोगों की जो प्राकृतिक सुन्दरता है, बाह्य अथवा आन्तरिक , दोनों को देखना चाहिए लोगों का ब्योहार कैसा है रहन सहन कैसा है , भारतीय सभ्यता दुनिया की सबसे सुन्दर सभ्यता है और इस तरह से इस वेबसाइड का जो सर्वे है उसे मै गलत करार देता हूँ

शुक्रवार, फ़रवरी 26, 2010

एक नया अध्याय

सचिन रमेश तेंदुलकर एक ऐसा भारतीय सितारा जो की एक बार फिर समूचे भारत को अपनी चमक से जगमगा दिया
अपने लम्बे क्रिकेटकैरिअर में एक बार फिर यह दिखा दिया है की अभी मैदान पर अकेला चमक सकता है इस एक दिवसीय क्रिकेट मैच के इतिहास मे एक और अध्याय जोड़ते हुए सचिन ने २४ फरवरी २०१० को खेले गए एक दिवसीय क्रिकेट मैच जो की दक्षिण अफ्रीका और भारत के मध्य खेला गया
२०० रनों की पारी खेलते हुए स्कोर खड़ा किया बदले में दक्षिण अफ्रीका २४८ रन ही बना सकी और धरासाई हो गयी सचिन ने २०० रनों की पारी खेल कर एक और रिकॉर्ड अपने नाम कर लिया जो की विश्व रिकॉर्ड है
५ जनवरी १९७१ में एक दिवसीय क्रिकेट मैच का सुरुआत हुवा और १९८४ में रिचेर्ड्स ने १८० रनों की पारी खेली थी
इसके ३ साल बाद १९८७ में एक और १८० रनों की पारी खेली
इसके १० साल बाद सईद अनवर ने १९९७ में १९० रनों की पारी खेली
इसके १२ साल बाद २००९ में चार्ल्स कोवेंट्री ने सईद अनवर की बराबरी की और १९४ रन नोट आउट भी रहे
वन इतिहास में १८० रनों की पारी खेलने वालो में सचिन का भी नाम है जोकि १९९९ में हैदराबाद में न्यूजीलैंड के खिलाफ १८६ रन बनाये थे
और फिर एक बार २४ फरवरी २०१० में ग्वालिअर साऊथ अफ्रीका के खिलाफ २०० रनों की पारी खेली
हम भारतीयों को सचिन पर गर्व है|