कली का कल चला गया,
बहार बन के आ गयी |
निशा गयी, प्रभा हुई,
रश्मि वन में छा गयी |
मधुप जलज पे आ गए,
कुमुद भी शर झुका लिए|
पल्लवी विहर गयी,
कुंज कली खिल गयी |
तुहिन विन्दु की छटा,
विभावरी बिछा गयी |
प्रज्ञा काल आ गया,
विहग का गान छा गया |
मोहनी छटा लिए,
कंचना पिरो गयी |
कंचना पिरो गयी ||
बहार बन के आ गयी |
निशा गयी, प्रभा हुई,
रश्मि वन में छा गयी |
मधुप जलज पे आ गए,
कुमुद भी शर झुका लिए|
पल्लवी विहर गयी,
कुंज कली खिल गयी |
तुहिन विन्दु की छटा,
विभावरी बिछा गयी |
प्रज्ञा काल आ गया,
विहग का गान छा गया |
मोहनी छटा लिए,
कंचना पिरो गयी |
कंचना पिरो गयी ||
दीपांकर कुमार पाण्डेय
(सर्वाधिकार सुरक्षित )
प्रज्ञा काल आ गया,
जवाब देंहटाएंविहग का गान छा गया |
मोहनी छटा लिए,
कंचना पिरो गयी |
कंचना पिरो गयी ||
वाह वाह.
आप नवगीत बहुत अच्छा लिखते हैं दीप जी बधाई आपको.
बहुत ही भावपूर्ण नवगीत....... सुंदर प्रस्तुति.....
जवाब देंहटाएंछायावादी प्रकृति की कविता आज भी लिखी जाती है यह देख कर सुखद अनुभव होता है. बहुत अच्छी रचना.
जवाब देंहटाएंशब्दों के जादूगर हैं आप दीप भाई
जवाब देंहटाएंBahut sunder rachna!
जवाब देंहटाएंbahut sundar abhivyakti, yahan tak laane ke liye aabhar
जवाब देंहटाएंक्या समा बांधा है,
जवाब देंहटाएंवाणी-कुसुम की माला से ऊषा की अर्चना हो गई!!
कली का कल चला गया,
बहार बन के आ गयी |
निशा गयी, प्रभा हुई,
रश्मि वन में छा गयी |
नवगीत अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं।
- हरीश
सुन्दर गीत... शब्दों का चयन अच्छा..
जवाब देंहटाएंIndeed a beautiful creation !
जवाब देंहटाएंप्रज्ञा काल आ गया,
जवाब देंहटाएंविहग का गान छा गया |
मोहनी छटा लिए,
कंचना पिरो गयी |
कंचना पिरो गयी
सुन्दर नवगीत.......
deepak ji ..
जवाब देंहटाएंaapko badhaaii ...likhte rahe ..nikhaar aati jaayegi ..
agar mere blog n aaye ho to aapka swagat hai ..
http://babanpandey.blogspot.com
photo par bhi click kar sidhe blog tak pahunch sakte hai //
बहुत खूब ....!!
जवाब देंहटाएंप्रज्ञा काल आ गया,
जवाब देंहटाएंविहग का गान छा गया |
मोहनी छटा लिए,
कंचना पिरो गयी ...
Bahut khoob ... sundar navgeet hai ...
का है यू
जवाब देंहटाएंकछु समझ नाहीं आवा हो
कऊनो तकलीफ आहि का ?
यह नवगीत बहुत ही प्यारा है...बहुत खूब...
जवाब देंहटाएंdeep 22
जवाब देंहटाएंnice blog keep posting
Lyrics Mantra
Music Bol
Bahut Sunder rachna
जवाब देंहटाएंhttp://amrendra-shukla.blogspot.com/
समय नवल हो।
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना है
जवाब देंहटाएंthoda kam samaj me aaya ,,but the thing i get is just awesome......
जवाब देंहटाएंkhubsurat or bhawpurna prastuti. dhanyabad.
जवाब देंहटाएंयार हम तो फैन हो गये तुम्हारे
जवाब देंहटाएंक्या जादूगरी की है शब्दो की
बेहतरीन नवगीत
फालो कर रहा हूँ आगे भी पढना चाहूँगा
सैनी जी स्वागत है आप का ,और बहुत बहुत धन्यवाद हौसला बढाने का
जवाब देंहटाएंदीपंकर जी,
जवाब देंहटाएंआपके विचारों से जो शब्द प्रवाह इस नव-गीत के रूप में बहा है, उसे पढ़ कर 'दिनकर' साहब की स्मृति हो आई है. बहुत ही खूबसूरत शब्द चयन, मनमोहक शैली आपको बुलंदियों पर ले जाये. शुभ कामनाओं के साथ.
प्रोफेसर अमित हंस.
http://avhans.blogspot.com
beautiful..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर शब्द चयन व भाव....
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना है| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंBahut sundar rachna sundar se bhav liye.......
जवाब देंहटाएंबहुत खूब .... ! सुंदर रचना है
जवाब देंहटाएंकभी समय मिले तो हमारे ब्लॉग//shiva12877.blogspot.com पर भी अपने एक नज़र डालें
प्रज्ञा काल आ गया,
जवाब देंहटाएंविहग का गान छा गया |
मोहनी छटा लिए,
कंचना पिरो गयी |
कंचना पिरो गयी
बहुत प्यारी रचना
कली का कल चला गया,
जवाब देंहटाएंबहार बन के आ गयी |
निशा गयी, प्रभा हुई,
रश्मि वन में छा गयी |
बहुत सुन्दर रचना । आपका यह नवगीत बहुत अच्छा लगा । बधाई स्वीकारे ।