अभी तो कहानी सुने,
अब तो जुबानी सुनो
अपने समाज का हम
रूप दिखाएँगे |
बसन बटोरे नाही,
वदन सिकोरे नाही,
काया के बहाव को,
हम भाव से दिखायेंगे|
आज के वसन में तो
रख्खा क्या है भाई मेरे,
ऐसे ही वसन को हम,
पास नहीं लायेंगे|
फूल जैसी काया की
ये छाया तो विगारे है,
फूल जैसी काया से
हम इसको हटायेंगे ||
अब तो जुबानी सुनो
अपने समाज का हम
रूप दिखाएँगे |
बसन बटोरे नाही,
वदन सिकोरे नाही,
काया के बहाव को,
हम भाव से दिखायेंगे|
आज के वसन में तो
रख्खा क्या है भाई मेरे,
ऐसे ही वसन को हम,
पास नहीं लायेंगे|
फूल जैसी काया की
ये छाया तो विगारे है,
फूल जैसी काया से
हम इसको हटायेंगे ||
दीपंकर कुमार पाण्डेय
(सर्वाधिकार सुरक्षित )
gahan abhivyakti
जवाब देंहटाएंछायावादी युग की कविता सी लगी.. बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर कामना और भावना के साथ रची गई सुन्दर रचना के लिए बधाई!
जवाब देंहटाएंफूल जैसी काया की
जवाब देंहटाएंये छाया तो विगारे है,
फूल जैसी काया से
हम इसको हटायेंगे
wah.bahut sunder.
छाया की बीमारी है छाया दीखे कारी है,
जवाब देंहटाएंछाया आगे पीछे फ़िरे छाया चमत्कारी है,
छाया से सिनेमा ने छाया से मीडिया ने,
दुनिया को लिया घेरे में बुरी यह बीमारी है.
(सराहनीय रचना है)
छन्दबद्धता बेहतर है पर भाव और गहरे और अप टू द पॉंइंट होने चाहिये थे।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा प्रयास है। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंकविता में जहाँ भावनाएं हैं वहीँ कुछ करने की इच्छा और कामनाएं भी.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर.
sundar bhawana
जवाब देंहटाएंbahut badhiya .badhai.
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक और सुन्दर अभिव्यक्ति..
जवाब देंहटाएंsundar aur pyari...rachna:)
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंबहुत ही सटिक अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक और सुन्दर अभिव्यक्ति..
गहरी उतरती वसन प्रकृति।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति .. .... ह्रदय ग्राही ...
जवाब देंहटाएंगहन विचारों और मनोभावों की प्रभावी अभिव्यक्ति......
जवाब देंहटाएंमुझे भी छाया वादी युग का एहसास हो रहा है ... अच्छी रचना है ...
जवाब देंहटाएंएक और सुन्दर प्रयास किया है दीपंकर जी आपने, हमारी ओर से आपको हार्दिक शुभ कामनाएँ.
जवाब देंहटाएंSunder sabdo se rachi ek behtreen rachna k liye badhai..........khed hai ki der se aa paya........kuch dino se kafi vyast tha..kashama chahunga
जवाब देंहटाएंअति सुंदर छंद। बधाई।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंवाकई इस लाल किताब के सभी छंद खुबसूरत है , अच्छे लगे !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर !
अत्यंत ओजपूर्ण,सामाजिक सरोकारों से भरपूर बेहद सटीक एवं सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए बधाई.
जवाब देंहटाएंsundar rachna.
जवाब देंहटाएंहर शब्द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबधाई.
वृक्षारोपण : एक कदम प्रकृति की ओर said...
जवाब देंहटाएंडॉ. डंडा लखनवी जी के दो दोहे
माननीय डॉ. डंडा लखनवी जी ने वृक्ष लगाने वाले प्रकृतिप्रेमियों को प्रोत्साहित करते हुए लिखा है-
इन्हें कारखाना कहें, अथवा लघु उद्योग।
प्राण-वायु के जनक ये, अद्भुत इनके योग॥
वृक्ष रोप करके किया, खुद पर भी उपकार।
पुण्य आगमन का खुला, एक अनूठा द्वार॥
इस अमूल्य टिप्पणी के लिये हम उनके आभारी हैं।
http://pathkesathi.blogspot.com/
http://vriksharopan.blogspot.com/
पसंद आई रचना.
जवाब देंहटाएंphool jaisee kaya se ham isko hatayenge.bahut sundar bhvpoorn rachna...
जवाब देंहटाएंअच्छे भावों के साथ सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना..
जवाब देंहटाएंसटिक अभिव्यक्ति ... सुन्दर रचना...
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