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शुक्रवार, फ़रवरी 04, 2011

छंद-1

अभी तो कहानी सुने,
अब तो जुबानी सुनो
अपने समाज का हम
रूप दिखाएँगे |

बसन बटोरे नाही,
वदन सिकोरे नाही,
काया के बहाव को,
हम भाव से दिखायेंगे|

आज के वसन में तो
रख्खा क्या है भाई मेरे,
ऐसे ही वसन को हम,
पास नहीं लायेंगे|

फूल जैसी काया की
ये छाया तो विगारे है,
फूल जैसी काया से
हम इसको हटायेंगे ||
                           दीपंकर कुमार पाण्डेय  
(सर्वाधिकार सुरक्षित )


35 टिप्‍पणियां:

  1. छायावादी युग की कविता सी लगी.. बहुत सुन्दर

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  2. बहुत सुन्दर कामना और भावना के साथ रची गई सुन्दर रचना के लिए बधाई!

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  3. फूल जैसी काया की
    ये छाया तो विगारे है,
    फूल जैसी काया से
    हम इसको हटायेंगे
    wah.bahut sunder.

    जवाब देंहटाएं
  4. छाया की बीमारी है छाया दीखे कारी है,
    छाया आगे पीछे फ़िरे छाया चमत्कारी है,
    छाया से सिनेमा ने छाया से मीडिया ने,
    दुनिया को लिया घेरे में बुरी यह बीमारी है.
    (सराहनीय रचना है)

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  5. छन्‍दबद्धता बेहतर है पर भाव और गहरे और अप टू द पॉंइंट होने चाहि‍ये थे।

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  6. कविता में जहाँ भावनाएं हैं वहीँ कुछ करने की इच्छा और कामनाएं भी.
    बहुत सुन्दर.

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत सटीक और सुन्दर अभिव्यक्ति..

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  8. बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।

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  9. बहुत सुन्दर
    बहुत सटीक और सुन्दर अभिव्यक्ति..

    जवाब देंहटाएं
  10. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति .. .... ह्रदय ग्राही ...

    जवाब देंहटाएं
  11. गहन विचारों और मनोभावों की प्रभावी अभिव्यक्ति......

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  12. मुझे भी छाया वादी युग का एहसास हो रहा है ... अच्छी रचना है ...

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  13. एक और सुन्दर प्रयास किया है दीपंकर जी आपने, हमारी ओर से आपको हार्दिक शुभ कामनाएँ.

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  14. Sunder sabdo se rachi ek behtreen rachna k liye badhai..........khed hai ki der se aa paya........kuch dino se kafi vyast tha..kashama chahunga

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  15. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  16. वाकई इस लाल किताब के सभी छंद खुबसूरत है , अच्छे लगे !
    बहुत सुंदर !

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  17. अत्यंत ओजपूर्ण,सामाजिक सरोकारों से भरपूर बेहद सटीक एवं सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए बधाई.

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  18. हर शब्द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति ।

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  19. सुन्दर अभिव्यक्ति
    बधाई.

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  20. वृक्षारोपण : एक कदम प्रकृति की ओर said...

    डॉ. डंडा लखनवी जी के दो दोहे

    माननीय डॉ. डंडा लखनवी जी ने वृक्ष लगाने वाले प्रकृतिप्रेमियों को प्रोत्साहित करते हुए लिखा है-

    इन्हें कारखाना कहें, अथवा लघु उद्योग।
    प्राण-वायु के जनक ये, अद्भुत इनके योग॥

    वृक्ष रोप करके किया, खुद पर भी उपकार।
    पुण्य आगमन का खुला, एक अनूठा द्वार॥

    इस अमूल्य टिप्पणी के लिये हम उनके आभारी हैं।

    http://pathkesathi.blogspot.com/
    http://vriksharopan.blogspot.com/

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  21. phool jaisee kaya se ham isko hatayenge.bahut sundar bhvpoorn rachna...

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  22. अच्‍छे भावों के साथ सुंदर रचना।

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