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बुधवार, अक्टूबर 06, 2010

मनतब्य अपना -अपना

मै गाँधी जयंती के दिन समाचार पत्र पढ़ रहा था, उसमें गाँधी जी के बारे में छपा था, "किसिम - किसिम के गाँधी"|
इस लेख के अन्तर्गत लेखक ने समाज में ब्याप्त गाँधी जी की विभिन्न छवियों का उल्लेख किया था, कि मानव मस्तिष्क पर गाँधी जी कि कई तरह कि छाप  है|  कोई उनको कमजोर समझता है, तो कोई उनको सीधा समझता है, तो कोई  बेवकूफ  कि संज्ञा देता है, और कोई पैदैसी बूढा समझता है|
       दिल्ली विस्वविद्यालय के "आत्मा राम सनातन धर्म" महाविद्यालय में छात्र संगोष्ठी आयोजित कि गयी थी जिसमें गाँधी जी के विभिन्न पहलुओं पर चर्चायें हुईं,  जिसमें मुख्य  मुद्दा था "अहिंसा" गाँधी जी सत्य और अहिंसा के पुजारी थे, सवाल उठाया -गया  सत्य क्या है?
गाँधी पक्ष से उत्तर आया  कि दीन दुखियों कि सेवा करना, हमेशा धर्म का साथ देना सच्चाई के रास्ते पर चलना, बुराइयों से परहेज करना,  उत्तर पूरा नहीं हुआ  था कि तभी किसी ने  उनके तीनो बन्दरों के ऊपर टिप्पड़ी किया, क्या गाँधी जी के तीनो बन्दरों  का जो कथन था ("बुरा मत देखो" -(मतलब  किसी के  साथ अत्याचार हो रहा हो, तो उसे मत देखो,  आँखे बन्द कर लो|)   "बुरा मत सुनो"- (मतलब अगर किसी पर अत्याचार हो रहा है, तो उसकी पुकार भी मत सुनो, चिल्लाने दो उसे)|  "बुरा मत कहो"  -(किसी को कोई परेशान कर रहा है या कोई किसी ब्यक्ति पर अत्याचार कर रहा है तो किसी से भी मत कहो करने दो जो भी मनमानी कर रहा है) क्या यही मतलब है इसका |
       खैर ये तो थीं डिवेट कि बातें मगर आज इसी कथन के बहुत तगड़े फालोवर  हैं| अक्सर  मै देखता हूँ कुछ लोग किसी के साथ बद्तमीजी कर रहे होते हैं, और हम लोग नजर बचा कर, चुप चाप उसे अनसुना कर देतें हैं,| क्यों ?  क्योंकि वो किसी और के साथ हो रहा है|
         कदाचित, ऐसा ही गाँधी जी के साथ  हुआ, वो लन्दन से भगाए गए, ट्रेन से नीचे उतार दिए गए,नस्लवादी भेद भाव का शिकार हुए, तथा तरह - तरह कि प्रताडनाओं के शिकार बने तब वो स्वतन्त्रता संग्राम में सम्मिलित हुए, क्या इसके पहले भारत में अंग्रेजी शासन नहीं था,  या फिर भारतीयों पर अंग्रेजी प्रताड़ना नहीं थी,... -थी लेकिन तब तक इनकी लाइफ मस्त चल रही थी, और जब इनके ऊपर अंग्रजों का आक्रोश बरषा तब इन्हे देश भक्ति कि याद आई| अगर गाँधी जी चाहते तो भगत सिंह और उनके साथियों को फाँसी नहीं होती, मगर नहीं, इन्होने ऐसा नहीं किया |
एक साधारण सी बात है, अगर आप के घर में आप के बच्चों पर कोई मुसीबत आई है, तो सबसे पहले आप क्या करेंगे?  पहले आप बच्चों को बचाने का  हर सम्भव प्रयास करेगें, माना कि आप धर्म के अनुरूप चलतें हैं, लेकिन शार्स्त्र कहता है कि, अगर आप के पुत्रों पर कोई आपत्ति आई है, उनके प्राण शंकट में हैं, तो सबसे पहला धर्म है  कि उनकी प्राण रक्षा करना | लेकिन गाँधी जी ने ऐसा नहीं किया, क्यों क्या ये वीर पुरुष उनका साथ नहीं दे रहे थे इसलिए,   या फिर आप के वास्तविक पुत्र नहीं थे , फिर भी, थे तो वे भारत के लाल, काम तो वही कर रहे थे, जो आप कर रहे थे, बस फरक इतना था कि आप  लोगों को ले कर नारा लगते थे, और वो अंग्रेजों को मिटाने का काम करते थे | आप वगैर जयकारा  के और बिना जनता के परग नहीं भांजते थे, वो बिना किसी कि परवाह किये अंग्रेजों से जूझ पड़ते थे,
         कुछ लोग तो इन्हें ही अंग्रेजों के ज्यादा दिन टिकने का कारण मानते हैं, क्योंकि जिस तरह से विरोध का विगुल बजा था, १८५७ से लड़ाइयाँ जोर पकड़ रहीं थीं, बीच में गाँधी नामक गति अवरोधक आ के लड़ाइयों पर विराम लगा दिया | और अहिंसा का प्रचार करने लगे, बेचारे जो गरम दल के नेता वो कमजोर पड़ने लगे, और एक - एक करके मरते गए |
      कहीं ना कहीं ये भी  सियाशत कि एक चाल थी | क्योंकि भारत तब आजादी कि तरफ अग्रसर था, सब को पता चल गया था कि भारत अब आजाद हो गा, आज नहीं तो कल, क्योंकि सारी जनता उबलते तेल कि तरह खौल उठी थी | और तभी एक ऐसे  परिवार कि  इंट्री हुई, जो सभी को पीछे छोंड दिया और गाँधी जी के पिछलग्गू बन गए, |
         जो नेता बेचारे गाँधी जी के साथ सुरू से लगे रहे, उनका तो कुछ नहीं, लेकिन इनका  परचम लहराने लगा | क्योंकि इस परिवार के एक शख्स ऐसे थे जो कि चमचा गिरी में निपुड थे, और उन्ही के चमचागीरी का नतीजा है कि, उनके पुत्र को भारत के सत्ता कि सौगात मिली |
         इतना ही नहीं उन्होंने अपने पुरे परिवार का मार्ग प्रशस्त कर दिया, उन्होंने गाँधी जी के वास्तविक पुत्र को कभी राजनीति में सामने नहीं आने दिया, वरन इसके उनकी पौत्री जो कि एक कश्मीरी मुसलमान से प्यार करती थी, उस मुसलमान को उन्होंने गाँधी जी का दत्तक पुत्र बना दिया, और अपनी पौत्री कि शादी करा दिया |
           आज वो परिवार जातिवाद कि बात ना करते हुए भी जातीगत पक्षपात करता है,  कहा है कि   "प्रत्यक्षं कीं  प्रमाड्म"   अयोध्या मामला ही देख लीजिये जमीन के जो तीन तुकडे हुए हैं वो मात्र केंद्र सरकार कि ही दखलंदाजी है, अब इससे बड़ा प्रमाण  आप को क्या दूं | आप लोग कहते हो गाँधी जी धर्म के रस्ते पर चलते थे, क्या यही रास्ता दिखाया था अपने वंशजों को कि धर्म के तीन तुकडे कर दो, ये गाँधी जी कि कमजोरी कही जा सकती है, या उस परिवार कि चालाकी, लेकिन गाँधी जो भी हो गाँधी जी स्मर्णीय रहेगें |

8 टिप्‍पणियां:

  1. एक विचारशील लेख.

    अब इससे बड़ा प्रमाद आप को क्या दूँ |

    @ लेखक बन्धु, कृपया प्रमाद को प्रमाण कर लें.

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  2. हिन्दी ब्लाग जगत में आपका स्वागत है। स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने वालों के प्रति तल्ख टिप्पणी करना उचित नहीं है। लेख में वर्तनी की त्रुटियां हैं।

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  3. हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
    कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपने बहुमूल्य विचार व्यक्त करने का कष्ट करें

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  4. गांधीजी के तीन बंदरों का आषय ही उलट कर रख दिया है। यह कुतर्क है। राष्ट्रपिता का अपमान ठीक नहीं है।

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  5. जी रमेश जी मै राष्ट्र पिता का अपमान नहीं कर रहा हूँ|
    बल्कि जो लोग, इस वाक्य को आदर्श वाक्य मानतें हैं मै उनसे ये पूछ रहा हूँ कि क्या आप इस को उसके यथार्थ वाक्य से जोड़ते हो ? यदि जोड़ते हो तो आप ऐसा क्यों करे हो कि लोग परेशान होतें रहें और आप आराम से मौज करतें रहे ?

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  6. इस सुंदर से नए चिट्ठे के साथ हिंदी ब्‍लॉग जगत में आपका स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

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  7. लेखक बंधु, दुसरों में गलती निकालने की वजह अपने में गलती ढुँढो।

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