घुघरारी बनी लट की लटिया
रंग घोरी गए जो कपोलन की
जल आनि करैं बड़री अखियाँ
तनिके भौं भरी कलोलि करैं |
मुख बीच लगी नथुनी चमकै
जिमि बारी वसंत की बेरि जगै
बरसात की बाढ़ सी है नदिया
उफनाती लहर सी ये देह बनै
मन की मदिरा तजि प्रेम जगै
रंग घोरी गए जो कपोलन की
जल आनि करैं बड़री अखियाँ
तनिके भौं भरी कलोलि करैं |
मुख बीच लगी नथुनी चमकै
जिमि बारी वसंत की बेरि जगै
अधरारी बनी नग़ की मठिया
जो सोनार की शाल में सोन पकै|बरसात की बाढ़ सी है नदिया
उफनाती लहर सी ये देह बनै
मन की मदिरा तजि प्रेम जगै
जो बनै मदमोह के भोग लगै ||
दीपंकर कुमार पाण्डेय
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