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शुक्रवार, फ़रवरी 18, 2011

छंद

घुघरारी  बनी लट की लटिया
रंग घोरी गए जो कपोलन की
जल आनि करैं बड़री अखियाँ
तनिके भौं भरी कलोलि करैं |
मुख बीच लगी नथुनी चमकै
जिमि बारी वसंत की बेरि जगै
अधरारी बनी नग़ की मठिया
जो सोनार की शाल में सोन पकै|
बरसात की बाढ़ सी है नदिया
उफनाती लहर सी ये देह बनै
मन की मदिरा तजि प्रेम जगै
जो बनै मदमोह के भोग लगै || 
                                     दीपंकर कुमार पाण्डेय  
    (सर्वाधिकार सुरक्षित )

33 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बहुत बधाई
    इस सुन्दर सी रचना के लिए

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  2. bihari bhi agar aaj hote to shayad aapse irsha karte .gagar me sagar bharne ki shaili jo aapne apna li hai .bahut badhiya .

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  3. शब्द जैसे ढ़ल गये हों खुद बखुद, इस तरह कविता रची है आपने।
    ह्र्दय की गहराई से निकली अनुभूति रूपी सशक्त रचना

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  4. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  5. बिहारी की याद जगाती रचना के लिए बधाई.सुन्दरतम प्रस्तुति.

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  6. लोकगीत की तरह है ये रचना ..आने वाले समय में इसे गया जा सकता है...बधाई

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  7. मुझे तो इसकी भाषा बहुत पसंद आई दीप जी.

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  8. दीप जी, भाषा से छिटकते समय में सुंदर काव्य कृति प्रस्तुत करने के लिए सब से पहले आप बधाई स्वीकार करें|

    भाषा, बिम्ब, भाव बहुत ही सुंदर चुने हैं आपने| कथ्य के मामले में भी आपके प्रयास की सराहना करनी होगी|

    परन्तु मित्र ये कौन सा छन्‍द है, मैं नहीं समझ पाया हूँ| कृपया मुझे बताने की कृपा करें|
    http://samasyapoorti.blogspot.com ब्लॉग पर आप का स्वागत है

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  9. बहुत सुन्दर

    बधाई

    Rakesh Tewari

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  10. ख़ुबसूरत गीत बधाई दीप जी , आपकी ये रचना लोक गीत का अहसास करा रही है।

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  11. क्या बात है दीप जी. आज जब लोग काव्य की बुनियादी परम्परा से दूर नये प्रयोग करने में व्यस्त हैं, ऐसे में छंद और भी इतना सुन्दर त्रुटिहीन लिख कर आपने एक अलग ही जगह बन ली अपनी. बधाई.

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  12. बहुत सुन्दर लगी ये रचना ।
    बधाई ।

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  13. छंद को नया जीवन दे रहे हैं आप.. बहुत बढ़िया..

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  14. भाषा और भाव
    दोनों ही तरह से
    प्रभावशाली रचना .... !

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  15. बहुत ही सुन्‍दर अभिव्‍यक्ति ।

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  16. मन की मदिरा तजि प्रेम जगै
    जो बनै मदमोह के भोग लगै || sundar rachna
    www.upkhabar.in/

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  17. दीपांकर कुमार पाण्डेय जी!
    आपका ध्यान छंद-रचना की ओर आकर्षित करना चाहता हूँ जिससे आपकी रचनाओं में और निखार आ सके।
    =============================
    @ सवैया एवं घनाछरी छंदों का अपना एक अनुशासन होता है। उन पर आधारित रचना करने से पूर्व रचनाकार को काव्य-परंपरा के साथ -साथ मात्राओं, गणों, यति-गति आदि का ज्ञान प्राप्त कर लेना चाहिए।
    =================
    सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी

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  18. इस सुन्दर सी रचना के लिए बहुत बहुत बधाई| धन्यवाद|

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  19. achhi rachna .....
    होली की बहुत शुभकामनाये

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  20. भावों और शब्दों का बहुत सुन्दर संयोजन..सुन्दर रचना..होली की हार्दिक शुभकामनायें!

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  21. deepjee ek arase se blog se tatasthta rahee iseese response me deree huee iska khed hai.
    aapkee rachanae padkar apne school ke din aur hindi kee padaee yaad aa gayee .
    yanha south me aisee hindi sunne padne ke liye insaan taras hee jaata hai.
    aapkee kai rachanae aaj ek sath padee bada suhana dour raha .
    aabhar

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