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गुरुवार, अक्टूबर 25, 2012

रावण हूँ भ्रस्टाचारी नहीं

 एक राम लीला में रावण का अचानक दिमाग ख़राब हो गया, वो मंच से उतर कर भीड़ की ओर भागने लगा,उसको भीड़ की तरफ भागता देख मीडिया  भी पीछे - पीछे भागने लगी , रावण जी -! रावण  जी -! मंच छोंड कर कहाँ भागे जा रहे हो -रावण  जी जरा रुको तो  रावण जी .....।
      रावण जी अचानक रुके और पलट कर कहा, क्या बात है! आप लोग क्यों भाग रहे हो । पत्रकारों ने कहा-, आप मंच छोंड कर कहाँ भागे जा  रहे हो , रावन ने कहा- अचानक मेरे दिमाग में बात आई की मै तो सर्व शक्तिमान हूँ कभी अनाचार नहीं किया, अपनी जिंदगी में मै ने एक ही गैर सामजिक काम किया था, वो पराई स्त्री को चुराने का , मै सीता को सिर्फ  चुराया था परन्तु मै ने उसके साथ कोई अभद्र व्यवहार  नहीं किया , उसके सम्मान का पूरा ख्याल किया, हमारे  राज्य में मंत्रियों को भी यही आदेश था की वो अपना काम पूरी इमानदारी से  करें , और वो वैसा ही करते थे, परन्तु आज तो राजा ही  चोर है, राजा ही बलात्कारी है  और राजा ही भ्रस्टाचारी  है , इस राज्य में  क्या राजा क्या मंत्री सभी प्रजा का धन लूट कर  खा रहें हैं, अगर कोई इसके खिलाफ आवाज उठाता है या आन्दोलन करता है तो उसे गन्दी नाली का कीड़ा कहतें हैं , उसे तथा उसके सहयोगियों को डरातें  हैं धमकाते हैं नोटिस भिजवाते हैं । इतना ही नहीं स्त्रियों को भी ये मंत्री उपभोग की वस्तु  कहतें हैं । ऐसे निर्लज्ज मंत्रियों के बीच ऐसी निर्लज्ज राज व्यवस्था में मुझे जलाया जाएगा, और भ्रष्ट  लोग मुझे जलाएंगे , इससे बड़ा अपमान कभी नहीं हुआ होगा, मै  इस लिए मंच से भागा की कम से कम मुझे ऐसे लोग जलाएं जो सत्य प्रिय हों, न्याय प्रिय हों और भ्रष्ट  ना हों । क्योंकि मै  रावण  हूँ भ्रस्टाचारी  नहीं ।   

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