क्या बताएं यार जिधर देखो मुसीबत ही मुसीबत है, पूरी दिल्ली में कहीं नहीं, बस यहीं सांप निकलना था|
जहाँ इतनी साफ सफाई है,|
अरे कोई बात नहीं अंकल..., अंग्रेजों को क्या पता, हम उन्हें बोल देगें की, हम लोग शंकर भगवान् के भक्त हैं जहाँ भी शुभ काम होता है, हम सांप छोड़तें हैं, इस लिए सांप हम ने छोंडा है डरने की कोई बात नहीं है|
लेकिन एक और विडम्बना है....|
अब क्या अंकल....|
यार वो जो छत की पट्टी टूट रही है उससे डर लग रहा है.
अरे उससे क्या डरना अंकल वो तो कब की ठीक हो गयी है|
अरे नहीं यार, ठीक तो हो गयी है, लेकिन डर है की कहीं स्टेडियम में मै बैठा रहूँ और ऊपर से कोई पट्टी मेरे शर पर गिरे तो मेरी तो..........|
हाँ अंकल ये तो है, एक इडिया है मेरे दिमाग में, आप आदेश करें तो बोलूँ ,
अरे तू बोल यार ............|
अंकल आप ना एक हेलमेट बनवा लो ..........., अबे चुप हेलमेट बनवा लो, लोग क्या कहेगें,|
अरे पूरी बात तो सुनते नहीं हो बीच में ही बोल पड़ते हो, पहले पूरी बात सुनो.... मै कह रहा था की हेलमेट बनवा लो और हेलमेट पर शेरा की तस्वीर बनवा लो, और जब स्टेडियम में जाना तो पहन लेना, जो देखे गा बोल दूंगा की हमारे चेयरमैन साहब खेल भावना को शर से लगा कर रखतें हैं|
हाँ.. यार..ये तो बहुत अच्छा है|
ये तो शर दर्द का राम बांड इलाज है ..|
Mazedaar!
जवाब देंहटाएं"Bikhare Sitare"pe aapki tippnee ko leke jawab de rahee hun...ye kahani nahi hai...ek jeevani ka hissa hai...ek sansmaran hai.
bhai isi blog ko lal kalam mein parivartit kar diya,
जवाब देंहटाएंkya baat hai,
bahut khub.
likhte raho.