शुरू हुआ है जहां से जीवन,
वो तन है कितना पावन |
पा करके उस माँ का आँचल,
हरा भरा है ये उपवन ||
उस गोदी की लोरी क्या,
जो सावन सा सुख देती है |
हर तन्द्रा को भूल के प्राणी,
उस पन में भर देती है ||
जिस छाया में पल कर हम,
आज यहाँ तक पहुचें हैं |
उस छाया की महिमा क्या ......,
जो वेद पुराण भी कहतें हैं ||
ममता की बौछार है जो,
सब पर एक सी पड़ती है|
चाहे कितनी क्रूर बने वो,
पर तो माँ , माँ दिखती है ||
खून से जिसने सींच मुझको,
और तन में स्थान दिया |
उसी वृक्ष का फल हूँ इक मै,
जो जीवन मुझको दान दिया ||
मै अंधियारे में सोता था,
बन प्रकाश वो आई जो |
मेरा पहला शब्द वही था,
वो दुनिया में लाइ जो ||
-: सर्वाधिकार सुरक्षित :-
bahut sunder rachna ...........mere blog par aane ka bahut bahut shukriya dip ji.........
जवाब देंहटाएं