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सोमवार, अक्तूबर 18, 2010

वक्त नहीं

हर ख़ुशी है लोगों के दमन में,
पर एक हंसी के लिए वक़्त नहीं|
दिन रात दौड़ती दुनिया में,
ज़िन्दगी के लिए ही वक़्त नहीं|
माँ की लोरी का एहसास तो है,
पर माँ को माँ कहने का वक़्त नहीं |
सारे रिश्तों को तो हम मार चुके,
अब उन्हें दफ़नाने का भी वक़्त नहीं|
सारे नाम मोबाइल में हैं,
पर दोस्ती के लए वक़्त नहीं|
.गैरों की क्या बात करें,
अब तो अपनों के लिए ही वक़्त नहीं|
.आँखों में है नींद बड़ी,
पर सोने का वक़्त नहीं|
.दिल है ग़मों से भरा हुआ,
पर रोने का भी वक़्त नहीं|
पैसों कि दौड़ में ऐसे दौड़े,
की थकने का भी वक़्त नहीं|
पराये एहसासों की क्या कदर करें,
जब अपने सपनो के लिए ही वक़्त नहीं|
तू ही बता ये ज़िन्दगी,
इस ज़िन्दगी का क्या होगा,
की हर पल मरने वालों को,
जीने के लिए भी वक़्त नहीं...........||

16 टिप्‍पणियां:

  1. umda line......

    तू ही बता ये ज़िन्दगी,
    इस ज़िन्दगी का क्या होगा,
    की हर पल मरने वालों को,
    जीने के लिए भी वक़्त नहीं

    जवाब देंहटाएं
  2. सही है, आज की भाग-दौड़ वाली ज़िन्दगी में लोगों के पास सब है पर वक़्त नहीं है। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!
    उठ तोड़ पीड़ा के पहाड़!

    जवाब देंहटाएं
  3. लो जी आ गये आपके ब्लॉग पर भी!
    --
    रचना पढ़कर निराश नहीं होना पड़ा!
    --
    बहुत ही खूबसूरत अभिव्यक्ति है!
    --
    मेरा लाल सलाम स्वीकार करें!
    --
    टिप्पणी बाक्स से वर्ड-वेरीफिकेशन हटा दीजिए प्लीज!

    जवाब देंहटाएं
  4. सारे नाम मोबाइल में हैं,
    पर दोस्ती के लए वक़्त नहीं|
    बिलकुल सही कहा आपने..अब किन किन कामों के लिए हमारे पास वक्त है,यह भी लिखिए!...जैसे कि दूसरों की निंदा करने के लिए वक्त है,दूसरों की कमियां निकालने के लिए वक्त है, दूसरों को नीचा दिखाने के लिए वक्त है....वगैरा वगैरा!...बहुत सुंदर रचना, धन्यवाद!

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  5. जी बिल्कुल आप सही कह रही हैं, कि क्या दूसरों की कमियां निकालने या दूसरों को निचा दिखने का नहीं, मै उन लोगों को आलोच्य कर रहा हूँ जो अपने माता पिता को भूल जाते हैं, स्वार्थी होते हैं, स्वार्थ के लिए ही सब कुछ रखतें है, मैंने सिर्फ उनके लिए लिखा है| अगर इसमें कोई त्रुटी हो तो जरूर अवगत कराएं

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  6. मां की लोरी का अहसास तो है,
    पर मां को मां कहने का वक्त नहीं

    बहुत ही मार्मिक पंक्तियां...कुछ सोचने को मजबूर करती हैं।

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  7. जीवन ऐसी ही विडम्बनाओं और विसंगतियों का समुच्चय है !


    अरे ,शब्द पुष्टिकरण -इसे हटायें प्लीज !

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  8. सोने से पहले दो पल जग सको तो बात बने...
    दीपावली की ढेर सारी शुभकामनाएं...

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  9. बहुत सुंदर रचना, दीपावली की शुभकामनाएं.

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  10. .गैरों की क्या बात करें,
    अब तो अपनों के लिए ही वक़्त नहीं|
    क्या खुब कहा आपने ........................

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  11. बहुत सुन्दर व आज का सच बयां करती हुई कविता ... अच्छा लगा .

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  12. जी हाँ स्टंटकारों पर करारा व्यंग्य सही किया है आपने ,ऐसे लोग तो कहते हैं कि,ज़हर खाने की भी फुर्सत नहीं हैं.लेकिन समाज आज ऐसे ही लोगों को तो मान -सम्मान दे रहा है.

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